पितृपक्ष विषय पर शंका समाधान पितृपक्ष (महालय) के आरम्भ होने से कुछ दिन पूर्व ही लोगों में पितृपक्ष को लेकर कई तरह की शंकायें उतप्पन होती है...
पितृपक्ष विषय पर शंका समाधान
पितृपक्ष (महालय) के आरम्भ होने से कुछ दिन पूर्व ही लोगों में पितृपक्ष को लेकर कई तरह की शंकायें उतप्पन होती हैं और वे पीड़ितों से इस सन्दर्भ में प्रश्न करना शुरु कर देते हैं।
श्राद्ध क्या है?
कब करें?
कैसे करें?
तिथि कौनसी होगी? इत्यादि....!
मैंने इस तरह की समस्त शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया है। साथ ही इस वर्ष किस तिथि का श्राद्ध किस तारीख़ में पड़ेगा उसकी सूची सांगलन की है। आप सभी लोग इसका लाभ अवश्य उठाएं।
पितृपक्ष दोष निवारण कैसे करें?
श्राद्ध क्या है?
"श्रद्धया इदम shraadhham"
पितृगणों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं।
श्राद्ध कर्म में वाक्य की शुद्धता तथा क्रिया की शुद्धता मुख्य रूप से आवश्यक है।
"पितरों वाक्यमिछंति देवता"
महालय में मुख्यत: दो प्रकार के श्राद्ध किये जाते हैं।
1. पार्वण श्राद्ध
2. एकोदिष्ट श्राद्ध
परन्तु कुछ लोग मृत्यु के समय सपिंडन नहीं करवा पाए, वे इन दिनों में सपिंडन भी करवाते हैं।
जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृपिंण्डो में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिंडन श्राद्ध कहते हैं। इसी सपिंडन श्राद्ध को सामान्य बोलचाल की भाषा में पितृ मेलन या पटा में मिलाना कहते हैं।
फिर एक बार मन में शंका उठता है- सपिंडन क्या है?
समाधान- सपिंडन के विषय में तत्वदर्शी मुनियों ने अंतयेष्टि से 12वें दिन तीन पक्ष 6 माह में या 1 वर्ष परिपूर्ण होने पर सपिंडन करने को कहा है।
एक वर्ष पूर्ण होने पर भी यदि सपिंडन नहीं किया गया है, तो एक वर्ष उपरांत कभी भी किया जा सकता है। परन्तु जब तक सपिंडन क्रिया संपन्न नहीं हो जाती, तब तक सूतक से निवृत्ति नहीं मानी जाती।
जिसका उल्लेख गरुण पुराण के '13वें' अध्याय में किया गया है और कर्म का लोप होने से दोष का भी भागी बनना पड़ता है।
शंका:- श्राद्ध करना क्यों आवश्यक है?
समाधान: पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिसा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर रहता है। तो उनकी सक्रियता के निमित्त हमें श्राद्ध करना चाहिए।
अर्यमा भगवान श्री नारायाण के अवतार हैं एवं सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के पितृ हैं। तो जब हमे पितरों के निमित्त कोई कार्य करते हैं तो परोक्ष रुप से भगवान नारायाण की ही उपासना करते हैं और उनसे ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गरुण पुराण के "13वें अध्याय के 96वें" श्लोक में उल्लेख आया है, जो निम्नवत है।
श्लोक:
कृतस्य करणं नास्ति प्रेतकार्यादूते खग।
प्रेतार्थ तु पुनः कुयदिक्षय्यतृप्ति हेतवे।।
अर्थात: हे खग! प्रेत कार्य को छोड़कर अन्य किसी भी कर्म का पुनः अनुष्ठान नहीं किया जाता। किन्तु प्रेत की अक्षय तृप्ति के लिया पुनः-पुनः पिंडदानादि करना चाहिए।
श्राद्ध मुख्यतः 96 प्रकार के होते हैं। आज हम महलाय में होने वाली श्राद्ध की चर्चा करेंगे।
पितृपक्ष में दो तरह के श्राद्ध किये जाते हैं।
1. पार्वण श्राद्ध: यह श्राद्ध माता-पिता पितामह (दादा) परपितामह (परदादा) सप्तनिक मातामह (naana) प्रमातामह, वृद्ध प्रमातामह सप्तनीक का श्राद्ध किया जाता है।
2. एकोदिष्ट श्राद्ध: किसी एक के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध एकोदिष्ट श्राद्ध कहलाता है। इसके अंतर्गत पार्वण श्राद्ध में वर्णित लोगों को छोड़कर अन्य जितने रिश्ते हैं, सबका श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध किस तिथि में करें?
जिस तिथि को जो व्यक्ति मरता हाइनस तिथि को क्षयाह तिथि माना जाएगा। अतः मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध करना चाहिए। कुछ विशिष्ट श्राद्ध भी है। जो निम्नवत हैं।
1. पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध प्रोष्टपति श्राद्ध कहलाता है। पूर्णिमा को जिसकी मृत्यु हुई हो उसका पार्वण श्राद्ध अश्विन कृष्ण पक्ष की द्वादशी या सर्व पितृमोक्ष आमवस्या को किया जाता है।
2. सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध मातृ नवमी को किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री के निमित्त किये जाने वाले श्राद्ध में ब्राह्मण के अतिरिक्त ब्राह्मणी को भी भोजन कराना चाहिए।
3. विधवा या क्वारी स्त्री का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर करें।
4. सन्यासियों का श्राद द्वादशी को होता है।
5. चतुर्दशी को जिनकी सामान्य मृत्यु हुई हो उसका श्राद्ध द्वादशी या अमावस्या को करें।
6. जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाना चाहिए।
श्राद्ध हेतु तिथि का निर्धारण कैसे करें अर्थात यदि कोई तिथि 2 दिन है तो ऐसे में किस दिन श्राद्ध करें?
इसके लिए शास्त्रों में उल्लेख है कि पवित्र श्राद्ध अपराह्न व्यापिनी तिथि में किया जाता है।
इसके लिए सूत्र है: सूर्यास्त में सूर्योदय घटाकर 5 का भाग दें। भागफल में तीन का गुणा करें। प्राप्त लब्धि को सूर्योदय में जोड़ने पर जो समय प्राप्त हो वह अप्राहन काल का आरंभ है।
इस समय में भागफल जोड़ने पर अप्राहन काल का समाप्ति काल प्राप्त होगा। इस कालावधि में जो तिथि होगी उस तिथि को पार्वण श्राद्ध किया जाएगा।
यदि 2 दिन अपराह्न काल में वृद्धि हो तो जिस दिन तिथि का मान ज्यादा हो उस दिन उस तिथि को पार्वण श्राद्ध किया जाएगा।
एकोदाष्टि श्राद्ध मध्यान्ह व्यापिनी तिथि में किया जाता है।
मध्याहन निकालने का सूत्र: सूर्यास्त और सूर्योदय घटाकर 5 का भाग दें और दो का गुणा करें। गुणनफल को सूर्योदय में जोड़ें। यह मध्यान्ह कालिका आरंभ होगा। इसमें भागफल जोड़ें यह मध्यान्ह काल का समाप्ति काल होगा।
इस कालावधि में जो तिथि हो उस तिथि का एकोदाष्टि श्राद्ध उस दिन किया जाएगा। यदि किसी कारणवश तिथि पर श्राद्ध ना किया जा सका हो तो ऐसी अवस्था में द्वादशी या सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या को श्राद्ध किया जाता है।
श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है। अतः यदि श्रद्धा ना हो तो ब्राह्मण भोजन कदापि न कराएं। ब्राह्मणों को भी चाहिए की श्राद्ध में किसी के यहां भोजन करने से बचें। क्योंकि श्राद्ध में भोजन करने से ब्राह्मण का तपोबल कम होता है और ब्रह्म तेज का ह्वास होता है।
1. जिन कुंवारे बच्चों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध पंचमी के दिन किया जाता है।
2. जिन सौभाग्यवती स्त्रियों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध नवमी तिथि के दिन किया जाता है।
3. जिन सन्यासी, ब्रह्मचारी व्यक्ति की मृत्यु तिथि याद नहीं है उनका श्राद्ध द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
4. शस्त्रघात, जलने, विष आदि से पहले मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।
5. ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि को श्राद्ध करना चाहिए।
6. गया श्राद्ध के बाद भी श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए।
7. मृत्यु तिथि से 2 वर्ष पूर्ण होने के बाद श्राद्ध पक्ष में मृत्यु तिथि वाली तिथि के दिन श्राद्ध में मिलाना चाहिए।
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