पितृपक्ष प्रारम्भ तिथि 2022: आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा दिन: रविवार, दिनांक: 11-09-2022 विशेष: इस वर्ष पितृ पक्ष 11 सितंबर से शुरू होकर 25 सि...
पितृपक्ष प्रारम्भ तिथि 2022: आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा
दिन: रविवार, दिनांक: 11-09-2022
विशेष: इस वर्ष पितृ पक्ष 11 सितंबर से शुरू होकर 25 सितंबर तक रहेगा। पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण श्राद्ध पिंडदान किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार पितर देव स्वर्ग लोक से धरती लोक अपने परिजनों से मिलने पितृपक्ष में आते हैं। मान्यता है की जो व्यक्ति पितरों का तर्पण श्राद्ध नहीं करता उसे पितृदोष का सामना करना पड़ता है। यह दोष जीवन में कई तरह की मुश्किलों को खड़ा करता है। इसलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष में कुछ कार्यों को करने की मनाही होती है।
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पितृ दोष के लक्षण व हानियां
यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां हानियां उठानी पड़ती हैं। जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करते, हुए राक्षस, भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि विभिन्न प्रकार से पीड़ित करते रहते हैं।
पितृ दोष के लक्षण
1. घर में कलह तथा अशांति रहती है
2. रोग पीड़ाएँ पीछा नहीं छोड़ती
3. घर में आपसी मतभेद बने रहते हैं
4. कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं
5. अकाल मृत्यु का भय बना रहता है
6. संकट, अनहोनियाँ, अमंगल की आशंका बनी रहती है
7. संतान की प्राप्ति में विलंब होता है
8. घर में धन का अभाव रहता है
9. अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पड़ता है
10. परिवार एवं सगे-संबंधियों, मित्रों को भी विशेष कष्ट की प्राप्ति होती है
11. सभी भौतिक सुखों के होते हुए भी मन असंतुष्ट रहता है एवं परेशानियों से मुक्ति नहीं मिलती इत्यादि
पितृदोष एक अदृश्य बाधा है। ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। आपके आचरण से, परिजनों द्वारा की गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंतयेष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकती है।
पितृपक्ष में क्या ना करें?
1. शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितर देवता घर पर किसी भी रूप में आ सकते हैं। इसलिए घर के चौखट पर आये किसी भी व्यक्ति या पशु-पक्षी का तिरस्कार ना करें। घर पर आने वाले व्यक्ति को भोजन कराएँ और उनका आदर करें।
2. पितृपक्ष में चना, दाल, जीरा, नमक, सरसो का साग, लौक़ी और खीरा जैसी चीज़ों का सेवन ना करें।
3. किसी तीर्थ स्थान पर पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है की गया, बद्रीनाथ, प्रयाग, पिशाचमोचन(वाराणसी) में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जिन लोगों को विशेष स्थान पर श्राद्ध नहीं कर पा रहे हैं, अपने ग्राम के समीप तथा घर के किसी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।
4. पितृपक्ष में श्राद्ध आदि शाम, रात्रि या तड़के नहीं किया जाता है। यह हमेशा दिन में ही होता है।
5. पितृपक्ष में कर्म काण्ड करने वाले व्यक्ति को बाल और नाखून नहीं काटना चाहिए। इसके अलावा उसे दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए।
6. पितृपक्ष में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, दारु आदि का सेवन ना करें
7. अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान ना करें
8. पितृपक्ष में स्नान के समय तेल, उबटन आदि का प्रयोग ना करें
Vishesh: अगर किसी भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो गई है तो उसकी आत्मा की शान्ति के लिए नारायाणबली कृत्य पितृपक्ष में अवश्य कराना चाहिए।
पितृ दोष के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य कराएं।
आगे की जानकारी कल के विशेषांक में दी जाएगी
आचार्य पंडित राजेश चतुर्वेदी 'राधेजी'
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
वाराणसी
Doorbhash: 9554671601
7985958845
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