गीता ( Geeta ) मात्र उपदेश ही नहीं, बल्कि यह वह अमृत पान है जिसे हम पी लें तो हमारा जीवन बदल जाएगा. हर मनुष्य को पढ़ना चाहिए गीता, सुनना चा...
गीता
(Geeta) मात्र उपदेश ही नहीं, बल्कि यह वह अमृत पान है जिसे हम पी लें तो हमारा
जीवन बदल जाएगा. हर मनुष्य को पढ़ना चाहिए गीता, सुनना चाहिए गीता और जीवन में
उतारना चाहिए गीता. आज www.5minutesnews.com के माध्यम से अरविंद शुक्ला आपको
बता रहे हैं गीता सार और गीता के बारे में.
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गीता
सार In Hindi
• क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
Kyon vyarth chinta
karte ho? Kisse vyarth darte ho? Atma naa paida hoti hai, naa marti hai.
• जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का
पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
• तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा
किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
• खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज
तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस
यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
• परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे
तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम
करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण
में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा
है, तुम सबके हो।
• न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल
जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
• तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो।
यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
• जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द
अनुभव करेगा।
Geeta Updesh
क्या आप जानते हैं की हिन्दी
साहित्य के दो प्रमुख महाकाव्य कौन हैं?
1.
रामायण (Ramayan)
2.
श्री
मद्भगवद्गीता (ShriMadbhagvatgeeta)
आईये जानते हैं इन दोनों महाकाव्यों
से संग्रहित उपदेशों को जिनका हमारे जीवन से गहरा नाता होना चाहिए.
आप सबने महाभारत देखा और सुना होगा...!
अवश्य! कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उन उपदेशों (Geeta Updesh) को भी आपने सुना
होगा, जिसे ग्रहण करने के बाद अर्जुन ना सिर्फ कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए
तैयार हो गए थे, बल्कि उन्होंने विजय भी प्राप्त कर ली थी.
श्री कृष्ण के जिन उपदेशों से
अर्जुन जीत गए थे रण में,
हम बदल जायेंगे अगर उपदेशों को उतार
लिए हम अपने जीवन में!
हमें उतारना चाहिए उन उपदेशों को
जिनसे बदल गए थे अर्जुन. हमें उतारना चाहिए गीता के उन उपदेशों को अपने तन और मन
में जिनसे जीत गए थे अर्जुन. श्री कृष्ण (Shri Krishna Geeta Updesh) के दिखाए हुए मार्ग (Geeta ka marg) पर हमें आगे
बढ़ना चाहिए और गीता के हर एक शब्द (Geeta ke updesh) को अपने हृदय पर
छाप लेना चाहिए.
गीता में जीवन की वास्तविकता और
मनुष्य धर्म से जुड़े उपदेश दिए गए हैं। कई बार ऐसा होता है कि हमें अपनी समस्या
का समाधान नहीं मिलता या फिर विपत्ति के समय हमें बहुत परेशान हो जाते हैं।
कई लोग तो गुस्से में अपना आपा खो
बैठते हैं या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं, ऐसे में गीता में लिखे गए यह उपदेश हमारी सारी समस्याओं का
चुटिकयों में हल कर देते हैं और हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं साथ ही सफल जीवन
की प्रेरणा देते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के
युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश (Geeta ke Updesh) सुनाए थे जिसे सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
वहीं यह गीता का उपदेश युद्ध भूमि में
खड़े अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि यह सम्पूर्ण मानव जाति के लिए हैं और यह उपदेश
एक तरीके से लोगों के जीवन में सफलता पाने के लिए अचूक मंत्र भी है।
आइए जानते हैं Geeta
Saar को
जो हर मानव को उजाले की लेकर जाता है.
गीता के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण
ने मनुष्य के शरीर को महज एक कपड़े का टुकड़ा बताया है। अर्थात
एक ऐसा कपड़ा जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती है। अर्थात मानव शरीर, आत्मा का अस्थायी वस्त्र है, जिसे हर जन्म में बदला जाता है।
इसका आशय यह है कि हमें शरीर से
नहीं उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए। जो लोग मनुष्य के शरीर से
आर्कषित होते हैं या फिर मनुष्य के भीतरी मन को नहीं समझते हैं ऐसे लोगों के लिए
गीता का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है।
गीता सार में श्री कृष्ण ने कहा है
कि हर इंसान के द्धारा जन्म-मरण के चक्र को जान लेना बेहद आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु।
क्योंकि जिस इंसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है।
उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर
जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है। लेकिन इस बात से भी नहीं नकारा जा
सकता है कि हर इंसान अपनी मौत से भयभीत रहता है।
अर्थात मनुष्य के जीवन की अटल
सच्चाई से भयभीत होना, इंसान की वर्तमान खुशियों को भी
खराब कर देता है। इसलिए किसी भी तरह का डर नहीं रखना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि का विनाश होता है।
वहीं जब बुद्धि काम नहीं करती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और व्यक्ति का नाश हो
जाता है।
इस तरह हर व्यक्ति को अपने गुस्से
पर काबू करना चाहिए, क्योंकि क्रोध भी भ्रम पैदा करता
है। इंसान गुस्से में कई बार ऐसे काम करते हैं जिससे उन्हें काफी हानि पहुंचती है।
वहीं अगर क्रोध पर काबू नहीं किया
गया तो इंसान कई गलत कदम उठा लेता है। वहीं जब क्रोध की भावना इंसान के मन में
पैदा होती है तो हमारा मस्तिष्क भी सही और गलत के बीच अंतर करना छोड़ देता है, इसलिए इंसान को हमेशा क्रोध के हालातों से बचकर हमेशा शांत रहना
चाहिए। क्योंकि गुस्से में लिया गया फैसला इंसान को गहरी क्षति पहुंचाता है।
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